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3d printing complete tutorial part-5[Stereolithography-SL]


3d प्रिंटिंग पार्ट-5 [स्टेरोलिथोग्राफी]:-

Principle of stereo lithography:-

स्टीरियो लिथोग्राफी को ऑप्टिकल फेब्रिकेशन, फोटो सॉलिडिफिकेशन, रेजिन पेंटिंग जैसे नामों से भी जाना जाता है। यह एक 3D प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी है जिसमें photochemical process द्वारा परत दर परत जोड़कर 3D मॉडल का निर्माण किया जाता है।Stereolithography एक additive manufacturing process है।जिसमे ultraviolet laser को photopolymer resin के टब में फ़ोकस किया जाता है।

Working of stereo lithography:-

इसमें मॉडल का निर्माण एक लिक्विड से किया जाता है। इसमें एक लिक्विड से भरे टब में प्रकाश उत्सर्जक डिवाइस के माध्यम से लेज़र की किरणों को प्रेषित किया जाता है।इसमें लेज़र की किरण लिक्विड में  नीचे की तरफ से भेजी जाती है। स्टेरोलिथोग्राफी में द्रव का टब ऊपर की ओर बढ़ता है।क्रमशः इसी क्रम में वांछित उत्पाद की आकृति को ट्रेस करके मॉडल के अनुरूप लेज़र की किरण भेजी जाती है।इस लिक्विड टब में जहाँ पर भी लेज़र की किरण पड़ती है ,वहाँ का द्रव ठोस रूप धारण करके उत्पाद की आकृति को ग्रहण करता है।इस प्रकार सम्पूर्ण प्रोसेस के बाद वांछित 3D मॉडल प्राप्त हो जाता है।

Advantage:-

1-स्टेरोलिथोग्राफी एक तीव्र गति से चलने वाला प्रक्रम है।
2- इसके द्वारा किसी भी तरह की डिज़ाइन का निर्माण किया जा सकता है।
3-इसकी संरचना सरल और उत्पादकता अधिक होती है।

स्टेरोलिथोग्राफी प्रक्रम की सबसे बड़ी कमी यह है कि यह प्रक्रम बहुत महंगा है।

Application of स्टेरोलिथोग्राफी:-

1-मेडिकल मॉडल निर्माण में स्टेरोलिथोग्राफी का प्रयोग किया जाता है।
2-प्रोटोटाइप निर्माण में ।
3- प्लास्टिक के विभिन्न मॉडल के निर्माण में।

3D प्रिंटिंग की सीरीज में 4 पार्ट पहले ही लिखे जा चुके है, पढ़ने के क्लिक करे...👇

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