Thursday, April 30, 2020

Introduction to oil power hydraulic and pneumatics,Pascal law and it's application



द्रवीय तेल शक्ति प्रणाली:-

चुकी इस हैडिंग को हमने पहले ही पढ़ लिया है। पुनः पढ़ने के क्लिक करे..👇
परंतु फिर भी उसे संक्षिप्त रूप से निम्न प्रकार देखा जा सकता है...👇

(द्रवशक्ति प्रणाली)Hydraulic system:-

हाइड्रोलिक सिस्टम वह सर्किट है, जिसमें बल और शक्ति का स्थानांतरण तरल के माध्यम से होता है। साधारणतया तरल के रूप में एक तेल का उपयोग किया जाता है। एक द्रवीय तरल पदार्थ या एक द्रवीय तरल वह माध्यम है जिसके द्वारा हाइड्रोलिक मशीनरी में शक्ति स्थानांतरित की जाती है ।
हाइड्रोलिक सिस्टम को दो भागों में बांटा गया है।
1- hydrostatic सिस्टम
2-हाइड्रोकाइनेटिक सिस्टम

1-द्रवस्थितिकी प्रणाली(hydrostatic system):-

हाइड्रोस्टेटिक सिस्टम वह सिस्टम है,जिसमे द्रवीय  तरल का प्राथमिक कार्य दाब के माध्यम से बल व शक्ति का स्थानांतरण करना होता है। हाइड्रोस्टेटिक सिस्टर में मुख्य दो तत्व होते हैं।
First- पंपिंग यूनिट जो मैकेनिकल वर्क को हाइड्रॉलिक एनर्जी में चेंज करता है।
Second- हाइड्रोलिक मोटर जो हाइड्रोलिक एनर्जी को मैकेनिकल वर्क में चेंज करती है।
एक लीड जो परिपथ के रूप में होती है दोनों मुख्य घटकों को जोड़ती है। पंपिंग यूनिट जो दाब को स्थानांतरित करती है ट्रांसमीटर कहलाती है। हाइड्रोलिक मोटर जो बल एवं शक्ति को हाइड्रोलिक प्रेशर से प्राप्त करती है, कहलाती है।

2-द्रवगतिकी प्रणाली(Hydrokinetic or Rotadynamic system):-

हाइड्रोकाइनेटिक सिस्टम का उद्देश्य शक्ति का स्थानांतरण करना व कार्यकारी माध्यम के वेग में प्रवाह के परिवर्तन के कारण प्राथमिक आवश्यक प्रभाव प्राप्त करना है।इस स्थिति में दाब परिवर्तन को जितना संभव हो सके टालना चाहिए।
क्रिया(आपरेशन):- 
द्रव गतिकी ट्रांसमीटर में एक अपकेंद्री पंप या अंतरानोदक अवश्य होता है,जो चालक सॉफ्ट से जुड़ा होता है। इसमें एक आयल टरबाइन या रनर भी होता है, जो ड्राइविंग शाफ़्ट से जुड़ी होती है। शक्ति का स्थानांतरण ड्राइविंग सॉफ्ट से ड्राविंन शाफ़्ट की ओर तेल के सरकुलेशन के कारण इंपैलर और रनर के मध्य होता है।
अतः ज्यादा वक्त बर्बाद न करते हुए अगली टॉपिक पर विचार किया जाय।

वायवीय प्रणाली या गैस यांत्रिकी(Pneumatic system):-

न्यूमेटिक्स ग्रीक शब्द न्यूमा से लिया गया है। जिसका अर्थ है-जीवन की श्वास। गैस यांत्रिकी इंजीनियरी की वह शाखा है जो विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए दाबित गैस या दाबित वायु का उपयोग करता है। गैस यांत्रिकी में गैसों के व्यवहार का अध्ययन उनकी विराम अवस्था या गति की अवस्था में करते हैं। आधुनिक युग में बहुत से उपकरण जैसे वायु संपीडक, गैस टरबाइन आदि वायवीय प्रणाली पर आधारित हैं। इसकी दो प्रमुख शाखाएं हैं।
1-वायु स्थैतिकी(aerostatic)
2-वायुगतिकी(aerodynamics)

1-वायु स्थैतिकी(aerostatic):-

वायु स्थैतिकी तरल स्थैतिकी का ही एक क्षेत्र है।जिसमें उन गैसों का अध्ययन किया जाता है,जो समन्वय प्रणाली के संबंध में गति में नहीं है ।वायु स्थैतिकी में वायु का अध्ययन विराम अवस्था रुकी  अवस्था में करते हैं इसके प्रयोग में एक बैरोमीटर का सूत्र प्रमुख है। जैसे कि हवाई पोत या गुब्बारा जो वायु में तैरने के लिए वायु स्थैतिकी के सिद्धांत का उपयोग करते हैं।

2-वायुगतिकी(aerodynamics):-

इसमें वायु तथा अन्य गैसीय तरलो की गति और इन तरलो  के सापेक्ष गतिमान ठोसों पर लगे बलों का विवेचन होता है। इस विज्ञान के सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रयोग में से एक अनुप्रयोग वायुयान की अभिकल्पना है।

पास्कल का नियम:-

पास्कल का नियम यह दर्शाता है कि किसी रुके हुए द्रव में एक बिंदु पर दाब तीव्रता सभी दिशाओं में समान होती है।
अतः पास्कल के नियमानुसार कोई भी तरल विराम अवस्था में सभी दिशाओं में समान दाब लगाता है।

पास्कल नियम के अनुप्रयोग:-

इस नियम के अनुसार मशीनें कम दाब लगाकर अधिक भार उठाने में सक्षम होती हैं। अतः पास्कल के नियम के अनुप्रयोग निम्न है।

  1. सिविल इंजीनियरिंग कार्यों में प्रयुक्त मशीनों में
  2.  ऑटोमोबाइल में।
  3. मेडिकल क्षेत्र की मशीनों में।
  4. हाइड्रोलिक जैक, हाइड्रोलिक रैम ,हाइड्रोलिक प्रेस,आदि में
  5. हाइड्रोलिक क्रेन, हाइड्रोलिक लिफ्ट में, रिवेटक हाइड्रोलिक ब्रेक, हाइड्रोलिक कपलिंग आदि में।

वायवीय और तरल शक्ति द्रव प्रणाली का औद्योगिक अनुप्रयोग:-


आज आधुनिक युग में हमारे चारों ओर हमें विभिन्न प्रकार की मशीनें देखने को मिलती हैं। सभी मशीनों का अपना -अपना कार्य व सिद्धांत हैं। आज सुई से लेकर हवाई जहाज तक सब कुछ मशीनों से ही बनाया जाता है। बड़ी बड़ी औद्योगिक इकाई में, सिविल इंजीनियरिंग के कार्यों में, यांत्रिक कार्यों में, विद्युत इंजीनियरिंग आदि सभी में द्रव शक्ति व वायु या गैसकी पर आधारित मशीनो का बड़ा ही योगदान है। इन मशीनों के औद्योगिक जगत में आ जाने से कार्यों को शीघ्रता से पूर्ण करने में इन मशीनों का योगदान महत्वपूर्ण रहा है, व मशीन के युग में नई क्रांति ला दी है। विभिन्न क्षेत्रों में इस के महत्वपूर्ण योगदान निम्न है यांत्रिकी के क्षेत्र में क्लच गियर लीवर तथा वैद्युत इंजीनियरिंग के क्षेत्र में मोटर से जनरेटर आदि एवं द्रव या गैस सिलेंडर आदि में इसका उपयोग किया जाता है। हाइड्रोलिक सिस्टम दाबित तरल के साथ काम करता है, जबकि वायवीय संपीडित हवा का उपयोग करती है।
इसके अतिरिक्त आयल पावर हाइड्रोलिक प्लास्टिक प्रसंस्करण मशीनरी, स्टील बनाने और प्राथमिक धातु निष्कर्षण अनुप्रयोगों, मशीन उपकरण उद्योग, लोडर, क्रशर, प्रेस, कपड़ा उद्योग मशीनरी आदि में उपयोगी है। वायवीय का दंत चिकित्सा, निर्माण, खनन और अन्य क्षेत्रों में भी उपयोग होता है।
इंजीनियरिंग से संबंधित अन्य विषयों के लिए क्लिक करे...👇
https://engineersthought4u.blogspot.com/?m=1
  ..................🙏धन्यवाद🙏
....................Keep support


Tuesday, April 28, 2020

[विभिन्न विद्युत उपकरणों में ऊर्जा बचत के उपाय] (Energy saving tips in various electric appliances)

लाइटिंग में ऊर्जा बचत के उपाय:-

  1.  उपयोग न होने पर बिजली बंद कर दें।
  2. दिन में सूर्य की रोशनी से काम करें। हल्के पर्दे व दीवारों का रंग हल्का रखें। ऐसा करने से कम वाट के प्रकाशिक उपकरणों से कमरे को उपयुक्त रूप से प्रकाशित किया जा सकता है।
  3. बल्ब व ट्यूबलाइट की धूल को साफ करते रहना चाहिए, ताकि इनकी प्रदीप्ति को बनाए रखा जा सके।
  4. साधारण 100 वाट के बल्ब के स्थान पर CFL उपयोग करके लगभग 80% तक ऊर्जा की बचत की जा सकती है। यह साधारण बल्ब से अधिक लगभग 8 गुना चलती है।
  5. पारंपरिक कॉपर चोक के स्थान पर इलेक्ट्रॉनिक चोक का उपयोग करें।

पंखे में ऊर्जा बचत के उपाय:-

  1. छतों के पंखों के लिए पुराने रेगुलेटर के स्थान पर इलेक्ट्रॉनिक रेगुलेटर का प्रयोग करें।
  2. अधिक ऊंचाई होने पर छतों के पंखे की बजाय एग्जास्ट पंखे का प्रयोग करें।
  3. पंखे के ब्लेड नियमित रूप से साफ करते रहना चाहिए, व समय-समय पर स्नेहन एवं ऑयलिंग करते रहना चाहिए।

इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस एवं कम्प्यूटर में ऊर्जा बचत के उपाय:-

  1. TV , म्यूजिक सिस्टम, टेप रिकॉर्डर कंप्यूटर आदि को स्टैंडबाई मोड में ना रखें। एक टीवी को स्टैंडबाई मोड में रखने पर 1 वर्ष में 70 यूनिट बिजली खर्च होती है।
  2. यदि आप कंप्यूटर चालू रखना चाहते हैं, और मॉनिटर का कोई उपयोग नहीं हो रहा हो तो मानीटर को बंद कर दें क्योंकि वह अकेली युक्ति आधी से अधिक सिस्टम की ऊर्जा का उपयोग करती है।
  3. मोबाइल, लैपटॉप, डिजिटल कैमरा आदि के चार्जर को प्लग में से निकाल कर रखें, अन्यथा यह लगे रह जाने पर पावर खींचते रहते हैं और शीघ्र ही खराब हो जाते हैं।
  4. स्क्रीन सेवर कंप्यूटर की स्क्रीन को बचाया जा सकता है ना कि ऊर्जा। उपयोग में ना आने पर कंप्यूटर शटडाउन कर अतिरिक्त उर्जा को बचाया जा सकता है।

रेफ्रिजरेटर/फ्रीज में ऊर्जा बचत के उपाय:-

  1. फ्रीज या फ्रीजर को नियमित रूप से डीफ्रॉस्ट करें ।ऐसा करने से मोटर को चालू रखने के लिए आवश्यक ऊर्जा की मात्रा में वृद्धि की जा सकती है।
  2.  दीवार तथा फ्रीज मध्य स्थान पर्याप्त होना चाहिए, ताकि इसके चारों ओर आसानी से हवा परिसंचारित हो सके।
  3. फ्रीज या फ्रीजर को अत्यधिक ठंडा ना रखें।
  4. यह सुनिश्चित कर लें कि आपके फ्रिज के दरवाजे की सील एयर टाइट है या नहीं।
  5. फ्रीज में रखी जाने वाली सामग्रियों को ढक कर रखें। बिना ढके खाने की नली निकल जाती है व कंप्रेसर को अधिक कार्य करना पड़ता है।
  6.  फ्रिज के दरवाजे को बार-बार ना खोलें।
  7.  फ्रिज के दरवाजे को अधिक समय तक खुला न छोड़ें।
  8.  अत्यधिक गर्म खाद्य सामग्री सीधे ही फ्रीज में न रखे।
  9. फ्रीजर को हमेशा भरा रखें इससे फ्रीज दक्षतापूर्वक काम करता है, और बिजली की बचत होती है।
  10.  फ्रिज के पीछे लगी कूलिंग कॉइल पर जमी धूल के कारण इसकी क्षमता घट जाती है जिससे मीटर को बहुत अधिक कार्य करना पड़ता है। इससे विद्युत व्यय बढ़ता है। प्रत्येक घर में वार्षिक विद्युत खपत का 25% द्वारा खर्च होता है।

वाशिंग मशीन में ऊर्जा बचत के उपाय:-

  1. जल की अनुकूल मात्रा का उपयोग करें।
  2.  ऊर्जा बचाने के लिए टाइमर सुविधा का उपयोग करें।
  3.  डिटर्जेंट की उचित मात्रा का प्रयोग करें।
  4.  अधिक गंदे कपड़ों के लिए ही गर्म पानी का प्रयोग करें।
  5.  इलेक्ट्रॉनिक ड्राइवर की बजाय सूर्य के ताप में हीं कपड़ों को सुखाएं।

वातानुकूलन में ऊर्जा बचत के उपाय:-

  1. स्वचालित तापमान कटऑफ का AC प्रयोग करें।
  2. रेगुलेटर को low cool स्थिति में रखें।
  3.  खिड़की व दरवाजे को ठीक तरह से बंद रखें।
  4.  AC व दीवार के मध्य वायु के आवागमन के लिए पर्याप्त स्थान रखें।
  5.  गर्मियों में जहां तक हो सके थर्मोस्टेट को अधिक रखें। बाहरी तथा भीतरी ताप में जितना कम अंतर होगा ऊर्जा की खपत भी उतनी ही कम होगी।
  6. अपने AC थर्मोस्टेट के निकट TV य लैम्प न रखें।
  7. AC के निकट पौधे रोपे लेकिन ध्यान रहे कि वायु का प्रवाह ना रुके इससे 10% विद्युत कम खर्च होती है।

 वाटर हीटर में ऊर्जा बचत के उपाय:-

  1. Thermostate के द्वारा कम तापमान रखें, ताकि हीटर व पाइप में गंदगी के कारण जंग ना लगे।
  2. टैंक को इन्सुलेट करें ताकि टैंक में पानी गर्म रहे।
  3. ठंडा पानी उपयोग करें,जिससे ऊर्जा बचेगी।
  4. लीक जोड़ों की मरम्मत करें ताकि गर्म पानी खराब ना हो।
  5.  टैंक की सफाई या पानी को निकाले ताकि कीचड़ के बने रहने से ऊष्मा ट्रांसफर नही होगी तथा दक्षता भी कम होगी।
  6. टाइमर लगाये ताकि हीटर लगातार न चले।
  7. पाइप को भी इन्सुलेट करे ताकि ऊष्मा की क्षति न हो।
  8. पुराने उपकरण को बदलकर नया लगाये।

कुकिंग में ऊर्जा बचत के उपाय:-

  1. सही साइज के बर्तन बर्तन का उपयोग करें।
  2. सही उपकरण को चुने।
  3. अपने स्टीव को साफ रखें।
  4. कुकिंग टाइम को कम करें।
  5. अच्छी क्वालिटी के बर्तन खरीदें।
  6. ज्यादा खाना बनाये।
  7. कुकिंग टिप्स का उपयोग करें।
  8. बर्तन के ढक्कन का उपयोग करें।
  9. बचे हुए खाने को माइक्रोवेव में गर्म करें।
  10. साधारण खाना बनाये।

वाटर पंप में ऊर्जा बचत के उपाय:-

  1. उपयोग के लिए सही पंप का चयन करें
  2. सही साइज के पंप का उपयोग कररें।
  3. सही ट्रिम का उपयोग करें ताकि कंट्रोल वाल्व पर होने वाले ह्रास से बचा जा सके।
  4. दाब ह्रास कम होना चाहिए।
  5. सही साइज का कंट्रोल वाल्व होना चाहिए।
  6. चर गति चालन का उपयोग करना चाहिए ताकि कम ऊर्जा लगें।
  7. पंप का रखरखाव सही होना चाहिए।
  8. अधिकतम दक्षता वाले पम्प का उपयोग करना चाहिए ताकि कम ऊर्जा लगे।
  9. कई पम्पो का उपयोग करें,जिससे ऊर्जा बचेगी।
  10. उचित पंप सील का उपयोग करें।

यातायात में ऊर्जा बचत के उपाय:-

  1. ईंधन खपत को अनुकूल रखने के लिए कार की अधिकतम गति 50 से 60 किलोमीटर प्रति घंटे के बीच में रखनी चाहिए।
  2. अधिकतम उर्जा को प्राप्त करने के लिए हमेशा गाड़ी को प्रथम गियर से चालू करना चाहिए।
  3. ईंधन खपत और बैटरी अपव्यय को रोकने के लिए गाड़ी को अचानक चालू और बंद नहीं करना चाहिए
  4. ब्रेकिंग के बाद गाड़ी को दोबारा गति देने के लिए प्रथम गियर का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  5. गियर बदलने के बाद क्लच को पूर्ण रूप से छोड़ देना चाहिए।

ऐसे ही हाइड्रॉलिक एंड न्यूमैटिक्स, कम्प्यूटर ऐडेड डिजाइनिंग एंड मैन्युफैक्चरिंग, कम्युनिकेशन स्किल, बिजनेस लेटर, 3D प्रिंटिंग जैसे महत्वपूर्ण विषयों को पढ़ने के लिए क्लिक करे...👇


Construction and working of Hydraulic jack [ Hydraulic and pneumatics chapter-5]

Hydraulic Jack


द्रविक जैक की कार्यप्रणाली भी द्रविक प्रेस की तरह ही होती है। द्रव चलित जैक एक पोर्टेबल मशीन है। जिसका प्रयोग साधारणतया चार पहिया वाहनों जैसे मोटर कार ट्रक में पहिया बदलने या मरम्मत करने के लिए उसे उठाने में किया जाता है।
 हाइड्रोलिक जैक में दायीं ओर एक प्लंजर होता है। जिसे एक हत्थे की सहायता से ऊपर नीचे चलाया जाता है , जबकि दूसरी ओर एक रैम होता है। जिसके ऊपर उठाए जाने वाले भाग को टिकाने के लिए एक प्लेटफार्म होता है। रैम का क्षेत्रफल प्लंजर से अधिक होता है।

जब प्लंजर को ऊपर की ओर उठाया जाता है, तो उसके नीचे एक कक्ष B में आंशिक निर्वात उत्पन्न हो जाता है। फलस्वरूप वाल्व R खुलता है, और कक्ष A से कुछ द्रव कक्ष B में आ जाता है। जब प्लंजर नीचे की ओर लाया जाता है, तो वाल्व R बंद हो जाता है, और कक्ष B में द्रव दाब बढ़ जाता है। जिसके कारण वाल्व S के  खुलने से अधिक दाब वाला द्रव कक्ष C में आता है। कक्ष C में द्रव दाब से रैम पर ऊपर की ओर बल लगने से रैम ऊपर उठ जाती है। फिर जब प्लंजर  ऊपर उठेगा तो वाल्व S बंद हो जाएगा और वाल्व R खुल जाएगा। जिससे पहली वाली क्रिया होगी। इस प्रकार बार-बार हत्थे को ऊपर-नीचे फेरने से A में से द्रव B से होता हुआ कक्ष C में पहुंचता जाएगा, और प्लेटफॉर्म पर रखा भार ऊपर उठा लिया जाएगा। रैम की अधिकतम उठान किसी जैक में निश्चित होती है। कार्य समाप्त होने पर एक स्क्रू की सहायता से कक्ष C का A से सीधा संबंध कर दिया जाता है। जिससे C में से द्रव पुनः A में चला जाता है। जिससे रैम अपनी पूर्व अवस्था में आ जाता है।
यांत्रिक लाभ=m. A/a
 जहाँ m=लीवर का विस्थापन/प्लंजर का विस्थापन
इस जैक की दक्षता 0.66 से 0.93 तक होता है।
हाइड्रॉलिक से संबंधित अन्य बिंदुओं के लिए क्लिक करें..👇
https://engineersthought4u.blogspot.com/2020/04/hydraulic-and-pneumatics-chapter-5.html?m=1

हाइड्रॉलिक रैम के बारे में पढ़ने के लिए क्लिक करें..👇
https://engineersthought4u.blogspot.com/2020/04/construction-and-working-of-hydraulic.html?m=1

कम्युनिकेशन स्किल तथा कंप्यूटर ऐडेड डिजाइनिंग एंड मैन्युफैक्चरिंग Autocad और पॉलीटेक्निक से संबंधित ख़बरो एवं विषयो के लिए यहाँ क्लिक करे..👇
https://engineersthought4u.blogspot.com/?m=1

Monday, April 27, 2020

communication skill-Business letter and correspondence

Correspondence


Definition of correspondence....

  Communication through exchange of letters is known as correspondance.it is reffered to the  written form of communication between two parties wheather involved in a business or in government offices or at individual level.it plays important role in our lives.correspondence is way by which we exchange our ideas,thoughts and other information.the defination of correspondence has expanded by the inclusion of digital media like- text messeges,social plateforms, etc.

clssification of correspondence:-

on the basis of areas it is divided into three types.
1-Personal
2-Business
3-Official

Personal- communication to friends or our relatives through letters is known as personal correspondenc.

Business- any correspondence done by business firm and associated to business related topic is known as business correspondence.

Official- any correspondence which is written by a government officer is known as official correspondence.

Here our focus will be on Business correspondence-

Business correspondence is a written communication between two parties related to a business.Businessman writes and recives letter in his day-to-day transactions which is called business correspondnce.

Types of business correspondence:-

1-Bussiness letters
  • sales letters
  • Enquiry letters
  • Quotation letters
  • order letters
  • credit letters
  • complaint letters
  • adjustment letters 
2-Business memos
3-circulars
4-orders
5-Business faxes
6-Business E-mail, etc.

Parts of business letters:-

The essential parts of a business letter are as follows:
  1. Heading
  2. Date
  3. Reference
  4. Inside address
  5. subject
  6. Salutation
  7. Body of letter
  8. Complimentry close
  9. Signature
  10. Enclosures
  11. Copy circulation
  12. Post script
1-Heading:- it contains the name and postal address of the business,E-mail,website address,telephone number and logo of business. it is written in top center of letter.
2-Date:- it is written in right side corner after the heading.
3-Reference:- it is write in left hand corner.it contain letter number.
4-Inside address:- it is writen in left hand side afer the reference.it contains the name and address of receiver.
5-subject:- The statement of  matter is write in this.
6-Salutation:- it placed after the inside address as sir/madam etc.
7-Body of letter:- Here,the subject matter is written in detailed form.
8-Complimentary close:- it is the ending of any letter as yours faithfully etc.
9-Signature:- it placed below the complimentary close.
10-Enclosures:- In this, the listed document details is given.
11-Copy circulation:- it is required when copies of letter is sent.
12-Post script:- it contains those, which is not written in body of letter as terms and conditions,warranty details etc.

Format of a business letter:-


Next part is comming soon....
Click here for more topics👇
https://engineersthought4u.blogspot.com/?m=1

Sunday, April 26, 2020

[Construction and working of hydraulic press] Hydraulic and pneumatics chapter-5[ Hydraulic press]

Hydraulic Press....

Construction and working of hydraulic press...

हाइड्रोलिक प्रेस पास्कल के नियम पर कार्य करती है। पास्कल के अनुसार किसी परिबद्ध तरल का दाब किसी बिंदु पर बदल जाता है ,तो सभी बिंदुओं पर तरल का दाब उतने ही मान से बदल जाएगा ।अधिकांशत द्रव चालित मशीनें पास्कल के नियम का पालन करती हैं।
     ये वे मशीनें हैं, जिनकी सहायता से कम बल लगाकर अधिक भार उठाया जा सकता है। इस प्रेस का उपयोग छेद करने में, इस्पात प्लेटों की कटिंग तथा बड़े उपकरणों के स्वतः नियंत्रण आदि कार्यों  में किया जाता है। इनमें दो स्थिर सिलेंडर होते हैं। जिनमें एक बड़े व्यास का तथा एक छोटे व्यास का होता है। बड़े सिलिंडर में रैम तथा छोटे में प्लंजर ऊपर नीचे सरक सकते हैं। दोनों सिलेंडरों को एक पाइप से जोड़ा जाता है। सिलेंडर तथा पाइप के मध्य एक द्रव भरा रहता है, तथा दोनों ही घर्षण रहित और जलरोधी बनाए जाते हैं। द्रवरोधी होने के कारण द्रव का रिसाव या क्षरण नहीं हो सकता है।
  अब यदि रैम का क्षेत्रफल A तथा प्लंजर का क्षेत्रफल a माने,और रैम पर रखे w भार के उठाने के लिए प्लंजर पर बल f नीचे की ओर लगाने की आवश्यकता पड़ती है।
रैम के नीचे दाब तीव्रता (P)=w/A
प्लंजर के नीचे दाब तीव्रता (p)=f/a
अतः पास्कल के नियमानुसार-
f/a=w/A=p
w/f=A/a
यांत्रिक लाभ=उठाया गया भार/लगाया गया भार
w/f=A/a
अतः यांत्रिक लाभ रैम तथा प्लंजर के क्षेत्रफलों का अनुपात है। और अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए प्लंजर का बल एक लीवर की सहायता से लगाया जाता है।
सामान्यतया द्रवीय प्रेस की दक्षता 0.80 से 0.85 तक होता है।
Click here more topic related to Hydraulic and pneumatics👇
https://engineersthought4u.blogspot.com/2020/04/hydraulic-and-pneumatics-chapter-5.html?m=1

[Hydraulic and Pneumatics] chapter-5 (Hydraulic system)

Hydraulic and pneumatics...

Chapter-5.....

(द्रवशक्ति प्रणाली)Hydraulic system:-

हाइड्रोलिक सिस्टम वह सर्किट है, जिसमें बल और शक्ति का स्थानांतरण तरल के माध्यम से होता है। साधारणतया तरल के रूप में एक तेल का उपयोग किया जाता है। एक द्रवीय तरल पदार्थ या एक द्रवीय तरल वह माध्यम है जिसके द्वारा हाइड्रोलिक मशीनरी में शक्ति स्थानांतरित की जाती है ।
हाइड्रोलिक सिस्टम को दो भागों में बांटा गया है।
1- hydrostatic सिस्टम
2-हाइड्रोकाइनेटिक सिस्टम

1-द्रवस्थितिकी प्रणाली(hydrostatic system):-

हाइड्रोस्टेटिक सिस्टम वह सिस्टम है,जिसमे द्रवीय  तरल का प्राथमिक कार्य दाब के माध्यम से बल व शक्ति का स्थानांतरण करना होता है। हाइड्रोस्टेटिक सिस्टर में मुख्य दो तत्व होते हैं।
First- पंपिंग यूनिट जो मैकेनिकल वर्क को हाइड्रॉलिक एनर्जी में चेंज करता है।
Second- हाइड्रोलिक मोटर जो हाइड्रोलिक एनर्जी को मैकेनिकल वर्क में चेंज करती है।
एक लीड जो परिपथ के रूप में होती है दोनों मुख्य घटकों को जोड़ती है। पंपिंग यूनिट जो दाब को स्थानांतरित करती है ट्रांसमीटर कहलाती है। हाइड्रोलिक मोटर जो बल एवं शक्ति को हाइड्रोलिक प्रेशर से प्राप्त करती है, कहलाती है।

2-द्रवगतिकी प्रणाली(Hydrokinetic or Rotadynamic system):-

हाइड्रोकाइनेटिक सिस्टम का उद्देश्य शक्ति का स्थानांतरण करना व कार्यकारी माध्यम के वेग में प्रवाह के परिवर्तन के कारण प्राथमिक आवश्यक प्रभाव प्राप्त करना है।इस स्थिति में दाब परिवर्तन को जितना संभव हो सके टालना चाहिए।
क्रिया(आपरेशन):- 
द्रव गतिकी ट्रांसमीटर में एक अपकेंद्री पंप या अंतरानोदक अवश्य होता है,जो चालक सॉफ्ट से जुड़ा होता है। इसमें एक आयल टरबाइन या रनर भी होता है, जो ड्राइविंग शाफ़्ट से जुड़ी होती है। शक्ति का स्थानांतरण ड्राइविंग सॉफ्ट से ड्राविंन शाफ़्ट की ओर तेल के सरकुलेशन के कारण इंपैलर और रनर के मध्य होता है।

Application of Hydraulic system:-

हाइड्रोलिक सिस्टम,प्रेशराइज लिक्विड के साथ कार्य करता है| इसका अनुप्रयोग निम्न है|
1-सिविल इंजीनियरिंग के कार्यों जैसे भवन निर्माण में ,सड़क बनाने में, नहर नाले बनाने में|
2- मैकेनिकल वर्क जैसे क्लच गियर आदि में।
3- आयल पावर हाइड्रॉलिक्स प्लास्टिक प्रसंस्करण मशीनरी में।
4- स्टील तथा प्राथमिक धातु निष्कर्षण के अनुप्रयोगों में।
5- ऑटोमेटिक प्रोडक्शन लाइन में।
6- एक्सट्रूजन प्रोसेस के रैम में ।
7-ऑटोमेटेड असेंबली यूनिट में ।
8-खुदाई के लिए प्रयुक्त मशीनरी में ।
9-हवाई जहाज नियंत्रण में।
10- मशीन उपकरण उद्योग में।
11- लोड अग्रसर प्रेस में।
12- कपड़ा उद्योग मशीनरी में।
13- मिसाइलों के स्वतः नियंत्रण में। 
14-वाहनों के ब्रेकिंग सिस्टम में।

Saturday, April 25, 2020

स्क्रूटनी और पुनः मूल्यांकन का रिजल्ट एक बार फिर लटका...

स्क्रूटनी और पुनः मूल्यांकन का रिजल्ट एक बार फिर लटका.....

पॉलिटेक्निक संस्थान में पढ़ने वाले छात्रों के स्कूटनी और पुनः मूल्यांकन के रिजल्ट एक बार फिर लटक चुके हैं।दिसंबर महीने  में हुई विषम सेमेस्टर की परीक्षा के बाद करीब 20000 छात्रों ने अपनी उत्तर  पुस्तिका के स्क्रूटनी और पुनः मूल्यांकन की अर्जी दी थी।लाकडाउन के चलते छात्रों की उत्तर पुस्तिका अभी तक नहीं जांची गयी हैं। अब सेमेस्टर परीक्षा की तैयारी में जुटे छात्र असमंजस में है कि अब उन्हें विषम सेमेस्टर के उन विषयों की तैयारी करनी है या नहीं। सबसे ज्यादा अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए समस्या बनी हुई है।
                सेमेस्टर परीक्षा के लिए अब ज्यादा समय नहीं है। छात्रों और संस्थानों की मानें तो अभी ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है । लेकिन स्क्रुटनी और पुनः मूल्यांकन का रिजल्ट ना आने की वजह से पिछले सेमेस्टर के विषयों की तैयारी नहीं हो पा रही है। अब छात्रों के सामने समस्या यह है कि परिणाम ना जारी होने की वजह से उन विषयों की दोबारा से परीक्षा देने की वजह से मुसीबत दुबारा खड़ी हो सकती है। 
      इसी संदर्भ में कुछ ऐसे भी संस्थान हैं जहां पर ऑनलाइन तैयारी के के नाम पर सिर्फ व्हाट्सएप ग्रुप गूगल क्लासरूम पर क्लासेस बनाकर छोड़ दी गई है। यह सब देखते हुए अबकी बार छात्रों के लिए एक विषम परिस्थिति खड़ी हो गई है।
          इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए मैं आप सभी लोगों से निवेदन करता हूं कि आप अपने सेमेस्टर परीक्षा की तैयारी खुद से करें।

Wednesday, April 22, 2020

3d printing complete tutorial part-4, selective laser sintering ( 3d printing method), concept,working,advantage ,dishadvantage and application of 3d printing


3D printing part-4 (SLS)

click here for part-1

click here for part-2

click here for part-3


Figure detail :-
1-Laser         2-roller   3-scanning system
4-powder delivery piston
5-fabrication bed piston
6- fabricated object
7-powder delivery system

SLS की अवधारणा (Concept of SLS) :-

SLS एक additive manufacturing तकनीक है ,जिसमें पदार्थ के पाउडर को उच्च पॉवर सोर्स वाले laser की सहायता से परत दर परत जोडकर 3D सॉलिड उत्पाद तैयार किया जाता है | selective laser sintering में high पॉवर सोर्स वाले laser जैसे कार्बोन डाई ऑक्साइड वाले laser का उपयोग किया जाता है | इस laser के द्वारा उपयोग होने वाली पदार्थ जैसे धातु ,सिरेमिक ,ग्लास , इत्यादि के पाउडर की sintering करके वांछित 3D उत्पाद तैयार किया जाता है |
SLS का पूर्ण रूप :- selective laser sintering

SLS का सिद्धांत (Principle of SLS) :-

          इस प्रक्रम के अंतर्गत सर्वप्रथम उत्पाद का मॉडल CAD सॉफ्टवेर में तैयार किया जाता है | फिर CAD Software में तैयार मॉडल को selective laser sintering 3d प्रिंटर में प्रिंट होने के लिए भेजा जाता है | उससे पहले CAD मॉडल को STL फाइल फॉर्मेट में बदला जाता है | फिर कंप्यूटर control सिस्टम के अंतर्गत material के पाउडर की sintering करके वांछित उत्पाद की परत बनायी जाती है | इसके बाद परत के उपर परत को तब तक जोड़ा जाता है जब तक की वांछित उत्पाद प्राप्त न हो जाए |

SLS की क्रियाविधि (Working method of SLS) :-

          इस विधि के अंतर्गत एक पाउडर डिलीवरी तथा उत्पाद निर्माण सिस्टम होता है | इसमें सर्वप्रथम पाउडर डिलीवरी सिस्टम से पदार्थ के पाउडर को पाउडर डिलीवरी पिस्टन की मदद से ऊपर की तरफ ले जाया जाता है ,जहाँ इस पाउडर को एक रोलर के द्वारा उत्पाद निर्माण सिस्टम में भेजा जाता है | इसमें भी एक फेब्रिकेशन पिस्टन होता है,जो नीचे की तरफ चलता है | उत्पाद निर्माण सिस्टम में भेजे गये पाउडर पर उत्पाद की वांछित आकृति ट्रेस करके उसके ऊपर laser स्कैनर सिस्टम के द्वारा laser से प्राप्त laser beam को डाला जाता है | जिससे वांछित उत्पाद पर पड़ने वाली laser beam के द्वारा वहा का पाउडर पिघल कर उत्पाद का अकार ग्रहण करता है | इसमें उत्पाद फेब्रिकेशन बेड पर परत दर परत बनता जाता है तथा बेड क्रमशः फेब्रिकेशन पिस्टन की मदद से नीचे जाता रहता है | इस प्रकार वांछित उत्पाद प्राप्त हो जाता है |

SLS प्रक्रम के लाभ (Advantage of SLS) :-

1-             इस विधि के द्वारा जटिल उत्पाद तैयार किये जा सकते है |
2-             इसमें पाउडर के द्वारा 3d model तैयार किये जा सकते है |
3-             इस प्रोसेस से बने उत्पाद की mechanical प्रॉपर्टीज की क्वालिटी अच्छी होती है |
4-             यह प्रक्रम तीव्र होता है, जिससे समय की बचत होती है |
5-             यह विधि फिनिशिंग ऑपरेशन के लिए भी प्रयोग की जाती है |
6-             यह विधि पुर्णतः आटोमेटिक होती है |
7-             sintering powder bed पूरी तरह से सेल्फ सपोर्टिंग होता है |

SLS प्रक्रम के अलाभ (Disadvantage of SLS ) :-

1-इसमें सतह छिद्रित बनती है |
2-laser पॉवर सोर्स के उपयोग के कारण महंगा प्रक्रम है|
3- मशीनरी की साइज़ बड़ी होती है |
4-घरेलु उपयोग के लिए उपयुक्त नही होता है |

SLS के अनुप्रयोग (Application of SLS) :-

अधिकतर कार्यो में SLS प्रक्रम उपयोग किया जाता है | परन्तु इसके कुछ महत्वपूर्ण अनुप्रयोग निम्न है
1-प्रोटोटाइप निर्माण में |
2-इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर में |
3-कास्टिंग के लिए पैटर्न निर्माण में |
4-महत्वपूर्ण मॉडल निर्माण में |
5-मिलिट्री के क्षेत्र में |
6-मेडिकल के क्षेत्र में |

click here for part-1

click here for part-2

click here for part-3

 next part is coming soon....

thank you


Tuesday, April 14, 2020

3d printing complete turial part-3 Computer aided design and manufacturing..... 3D printing processes/Methods.... LOM(Laminated object manufacturing


Computer aided design and manufacturing.....3D printing processes/Methods....LOM(Laminated object manufacturing

3D प्रिंटिंग पार्ट -3

3D प्रिंटिंग के दो पार्ट में हमने इसके लाभ अनुप्रयोग एवं प्रकार के बारे में जाना ,अतः आज से 3D प्रिंटिंग की आगे की जानकारी प्राप्त करेंगे |

3D printing part -1&2 ( 3D printing basic ,defination and classification, Advantage, processes and detailed content of FDM)

click here for part -1
click here for part -2

Let’s start part -3

LOM (Laminated object manufacturing )

जिस प्रकार Laminated object manufacturing 3D प्रिंटिंग की एक विधि है, ठीक उसी प्रकार Laminated object manufacturing भी 3D प्रिंटिंग की एक विधि है|
दुसरे शब्दों में कहा जा सकता है ,की Rapid Prototyping की प्रोसेस है |
इस प्रक्रम में जिस भी धातु या मटेरियल की प्रिंटिंग करनी होती है | वह धातु चादरों अर्थात पत्तियों के रूप में होता है |
Laminated object manufacturing method में इन धातु की पत्तियों (चादरों) को क्रमशः एक के ऊपर एक रख कर अर्थात जोड़ कर , उचित दाब एवं तापमान का प्रयोग करके जोड़ दिया जाता है जिससे वांछित उत्पाद प्राप्त हो जाता है | इन चादरों को आपस में जोड़ने के लिए पत्तियों के बिच में चिपकाने वाले पदार्थ का प्रयोग किया जाता है ,जिसे सहायक पदार्थ कहलाते है |

Laminated object manufacturing के अंतर्गत उत्पाद तैयार करने में प्रयुक्त पद निम्न है |

     1.  सर्वप्रथम धातु चादर को एक तप्त रोलर में मोड़कर कर रखा जाता है |
      2.  उसके बाद धातु चादर को तप्त रोलर से निकालकर plateform पर गुजारते है |
       3.  plateform पर laser beam के द्वारा उत्पाद की आकृति को ट्रेस करके उस पर लेज़र की किरण डाली जाती है, जिससे वांछित उत्पाद चादर में से कट कर      plateform पर स्थित रह जाता है तथा शेष चादर दूसरी तरफ लगे रोलर में waste material के रूप में एकत्रित हो जाता है|
        4.  इसमें एक layer बनने के बाद plateform नीचे आ जाता है, जिससे नई layer के लिए जगह मिल जाती है और दूसरी layer इसके ऊपर चढ़ाई जाती है |
        5.  इसी क्रम में बार-बार एक layer के ऊपर दूसरी layer  लगा कर वांछित 3D मॉडल तैयार कर लिया जाता है|
         6.  यही क्रम लगातार चलता रहता है,जब तक की पूरा Prototype बनकर तैयार नही हो जाता है |

 Advantage of Laminated object manufacturing :-

         1.  इस प्रक्रम के लिए Raw Material आसानी से मिल जाता है |
         2.  यह प्रक्रम आसन तथा अफोर्डेबल होता है |
         3.  यह प्रक्रम बहुत तेज गति से कार्य करता है,जिससे प्रोटोटाइप निर्माण में समय की बचत होती है |
         4.  इसमे बड़े आकार के भी उत्पाद बनाये जा सकते    है,जो अन्य प्रक्रमो के लिए कठिन है |
         5.  इसमे लागत कम आती है |
          6.  सेमी स्किल्ड आदमी भी इस प्रक्रम को चला सकता है|

Disadvantage of LOM :-

इस प्रक्रम की सबसे बड़ी कमी या हानि यह होती है की इसमें उत्पाद की यथार्थता अन्य प्रक्रमो की अपेक्षा कम तथा Scrap Material अत्यधिक निकलता है |

 Next part of selective Laser Sintering (SLS) is coming soon........

Thanking You...

Saturday, April 11, 2020

3D printing part-2 FDM( fused deposition modeling)



3D प्रिंटिंग पार्ट -1 में हमने जाना की 3D प्रिंटिंग क्या होती है इसके साथ ही ये भी जाना की इसके क्या फायदे और कितनी विधियाँ है |

इसी क्रम में आज फिर से इसके आगे की टॉपिक आज से शुरू होती है |

3D प्रिंटिंग पार्ट -2


1-FDM(Fused deposition modeling):-

Fused deposition modeling को fused filament fabrication भी कहते है | FDM के अंतर्गत प्लास्टिक पदार्थ का प्रयोग करके 3D मॉडल बनाये जाते है |

FDM की क्रियाविधि निम्लिखित है –

   1)   सबसे पहले उत्पाद का 3D मॉडल कंप्यूटर ऐडेड सोफ्टवेयर में बनाया जाता है |

   2)   CAD में तैयार मॉडल को STL फाइल फॉर्मेट में बदल कर इसको प्रिंट होने के लिए 3D प्रिंटर में भेजा जाता है |

   3)     FDM में use किया जाने वाला material Plastic के wire के रुप में होता हैं | जिसे फ़िलामेंट कहते है| इस फिलामेंट को नोजल में फीड किया जाता है | नोजल फिलामेंट को melt करके layer के रूप में जमा करता है | यह layer एक टेबल पर एकत्रित होता है ,जिसे base कहते है |

   4)   Nozzle तथा Base दोनों कंप्यूटर द्वारा control होते है, जो X,Y तथा Z Coordinate को adjust करके प्रिंटिंग करते है | Nozzle plateform पर Horizontal एवं Vertical गति करते हुए प्रिंटिंग करते है

   5)   इस प्रकार thermoplastic से बनी परत ठण्डी होकर कठोर हो जाती है, और निचले वाली परत के साथ मजबूत जोड़ बनाती है|

   6)   एक-एक परत बनती जाती है,और इसी क्रम में base धीरे-धीरे नीचे कर दिया जाता है |

   7)       प्रिंटिंग में लगने वाला समय उत्पाद की डिजाईन और आकार पर निर्भर करता है |

   8)   इस प्रकार FDM प्रिंटर से प्राप्त उत्पाद की फिनिशिंग के रूप में support के लिए लगाए गये पदार्थ को अलग कर लिया जाता है|

FDM के अनुप्रयोग :-

   1.  Prototype निर्माण में |
   2.  Automobile industry में |
   3.  Medical industry में |
   4.  Tool production और engineering product के       manfacturing में |


                      Next part is coming soon.......

                                     Thanking You

Friday, April 10, 2020

3D printing complete tutorial ( what is 3d printing?,application, steps and processes also methods)

3D printing tutorial part-1

What is 3d printing??

3d printing is the way of creating three dimensional solid object.3d printing is done by building up the object layer by layer. Usually 3d printer’s used plastic because it is easier to use and cheaper. Some 3d printers can 3d print with other material like metal and ceramics.3d printers are useful because they can make new objects very fast. It is also known as additive manufacturing.

Steps involved in 3d printing:-

There are three steps in 3d printing.

 1- Modeling: - The first step in 3d printing is modeling. In 3d printing something is to make on computer with the help of CAD (computer aided designing) software or with the help of 3d scanner.3d scanners are machines that takes lot of measurement and photograph of the object and automatically make a model on computer. It can be very fast but also more expensive. Cad model should be in STL file format.

 2- Printing: - After the modeling of the object, the next step is printing. In this step we print the object with the help of 3d printers. This process is called printing. In this step we print the object layer by layer. Typically layers are around 100 micrometer thick or about one tenth thickness of a human hair. The time of printing depends upon how critical design is and what’s the size of it.

 3- Finishing: - Final and third step of 3d printing is Finishing. When the 3d printers have finished the printing some time people finish the model. This means making small fixes to make it looks better.



Application of 3d printing:-

  1.  In small item manufacturing
  2.  To rebuild the accidental face
  3.  In manufacturing of cars, eurofighters and spare parts
  4.  In food printing
  5.  In manufacturing of guns and arms
  6.  To print shoes and dresses
  7.  In education and research centers
  8.  In rapid protyping
  9.  In manufacturing moulds and even jewelry also
  10. in making laptops and other computer parts

3d printing processes:-

  1.  Vat photopolymerization
  2.  Material jetting
  3.  Binder jetting
  4.  Powder bed fusion
  5.  Material extrusion
  6.  Directed energy deposition
  7. Sheet lamination

3d printing methods:-

 Mainly 3d printing methods are following.
  1.  FDM(fused deposition modeling)
  2.  LOM(laminated object manufacturing)
  3.  SLS(selective laser sintering)
  4.  SL(stereo lithography)
  5.  Ball 3to2 manufacturing

   3D printing complete tutorial part-2 will be coming soon                  Thank U